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Wednesday, October 15, 2025

मैसूर दशहरा उत्सव में बानू मुश्ताक को बनाया चीफ गेस्ट, कर्नाटक सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

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कर्नाटक सरकार द्वारा मैसूर दशहरा उत्सव में बानू मुश्ताक को मुख्य अतिथि बनाए जाने पर विवाद गहरा गया है। याचिकाकर्ताओं ने धार्मिक परंपराओं के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।

मैसूर/नई दिल्ली: कर्नाटक के विश्व प्रसिद्ध मैसूर दशहरा उत्सव को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता बानू मुश्ताक को इस साल के दशहरा उद्घाटन समारोह का मुख्य अतिथि बनाए जाने के कर्नाटक सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। इस मामले पर आज यानी कि 19 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।

मैसूर दशहरा को लेकर क्या है पूरा विवाद?
कर्नाटक सरकार ने मैसूर के चामुंडेश्वरी मंदिर में 22 सितंबर से शुरू होने वाले दशहरा उत्सव के उद्घाटन के लिए बानू मुश्ताक को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि चामुंडेश्वरी मंदिर में होने वाली पूजा और वैदिक अनुष्ठान हिंदू परंपराओं का हिस्सा हैं, जिसमें दीप प्रज्वलन, हल्दी-कुमकुम और फल-फूल अर्पित किए जाते हैं। याचिका में दलील दी गई है कि ये अनुष्ठान आगमिक परंपराओं के अनुसार होते हैं और इन्हें कोई गैर-हिंदू नहीं कर सकता।

याचिकाकर्ताओं ने मुश्ताक के चयन को हिंदू धार्मिक भावनाओं और परंपराओं का अनादर बताया है। विवाद को और हवा तब मिली जब मैसूर से बीजेपी के पूर्व सांसद प्रताप सिम्हा सहित कुछ वर्गों ने मुश्ताक के अतीत में दिए गए कुछ बयानों को ‘हिंदू विरोधी’ और ‘कन्नड़ विरोधी’ करार दिया। उनका कहना है कि यह उत्सव परंपरागत रूप से वैदिक मंत्रोच्चार और देवी चामुंडेश्वरी को पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ शुरू होता है, ऐसे में मुश्ताक का चयन परंपराओं के खिलाफ है।

कर्नाटक सरकार ने किया फैसले का बचाव
वहीं, कर्नाटक सरकार ने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि मैसूर दशहरा कोई निजी धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि राज्य का सार्वजनिक कार्यक्रम है। सरकार का तर्क है कि इस आयोजन में किसी भी धर्म के व्यक्ति को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करने पर कोई रोक नहीं है। सरकार ने यह भी बताया कि बानू मुश्ताक न केवल एक लेखिका हैं, बल्कि एक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं, जिन्हें पहले भी कई सरकारी कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जा चुका है।

कर्नाटक हाई कोर्ट ने खारिज की थीं याचिकाएं
15 सितंबर को कर्नाटक हाई कोर्ट ने इस मामले में दायर चार जनहित याचिकाओं, जिनमें से एक प्रताप सिम्हा ने दायर की थी, को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता किसी भी संवैधानिक या कानूनी उल्लंघन को साबित करने में विफल रहे। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी अन्य धर्म के व्यक्ति का इस तरह के आयोजन में शामिल होना न तो संविधान का उल्लंघन करता है और न ही धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है।

हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील
हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता एचएस गौरव ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है। याचिका में हाईकोर्ट के उस तर्क को चुनौती दी गई है जिसमें मुश्ताक को मुख्य अतिथि बनाने के फैसले को सही ठहराया गया था। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि चामुंडेश्वरी मंदिर में होने वाले अनुष्ठान संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित आवश्यक धार्मिक प्रथाएं हैं, और इन्हें गैर-हिंदू द्वारा नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसकी अध्यक्षता चीफ जस्टिस बी.आर. गवई और जस्जिस के. विनोद चंद्रन कर रहे हैं, ने मामले की तत्काल सुनवाई के लिए सहमति जताई है, क्योंकि उत्सव 22 सितंबर से शुरू होने वाला है।

देवी की मूर्ति पर पुष्पवर्षा के साथ शुरू होता है उत्सव
मैसूर दशहरा, जिसे नाडा हब्बा के नाम से भी जाना जाता है, कर्नाटक का एक प्रमुख सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव है। यह 22 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर को विजयादशमी के साथ समाप्त होगा। परंपरागत रूप से, यह उत्सव चामुंडेश्वरी मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच देवी चामुंडेश्वरी की मूर्ति पर पुष्पवर्षा के साथ शुरू होता है। यह आयोजन मैसूर राजघराने की परंपराओं से भी जुड़ा है। एक तरफ जहां सरकार अपने फैसले को समावेशी और संवैधानिक बता रही है, वहीं याचिकाकर्ता इसे धार्मिक परंपराओं का उल्लंघन मान रहे हैं। इस मामले ने न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक बहस को जन्म दिया है, बल्कि राजनीतिक सरगर्मियां भी तेज कर दी हैं।

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